कम या निल शुक्राणु का इलाज- कारण, लक्षण, और जांच।

कम या निल शुक्राणु का इलाज:- कारण, लक्षण, और जांच।

शादी के बाद संतान सुख हर दंपती का सपना होता है। लेकिन कुछ पुरुषों में शुक्राणु की संख्या बहुत कम (Oligospermia) या निल (Azoospermia) होने के कारण संतान प्राप्ति में बाधा आती है। यह स्थिति पुरुष बांझपन का एक प्रमुख कारण हो सकती है। समय पर सही जांच और इलाज से इस समस्या का समाधान संभव है, जिससे माता-पिता बनने का सपना पूरा हो सकता है। इस ब्लॉग में हम कम या निल शुक्राणु का इलाज, इसके कारण, लक्षण, जांच और आधुनिक इलाज के तरीकों के बारे में विस्तार से जानेंगे। साथ ही, कुछ घरेलू उपाय और जीवनशैली में बदलाव के टिप्स भी साझा करेंगे।

कम या निल शुक्राणु क्या होता है?

कम शुक्राणु (Oligospermia) तब होता है जब वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या सामान्य से कम होती है, यानी 15 मिलियन प्रति मिलीलीटर से कम। वहीं, निल शुक्राणु या Azoospermia वह स्थिति है जिसमें वीर्य में शुक्राणु बिल्कुल नहीं होते।

Azoospermia दो प्रकार की होती है:-

  • Obstructive Azoospermia: वीर्य नली में रुकावट के कारण शुक्राणु बाहर नहीं आ पाते, लेकिन टेस्टिकल्स में शुक्राणु बन रहे होते हैं।
  • Non-Obstructive Azoospermia: टेस्टिकल्स में ही शुक्राणु का उत्पादन कम या बिल्कुल नहीं होता।

कम या निल शुक्राणु के कारण

कम या निल शुक्राणु की समस्या कई कारणों से हो सकती है, जिनमें शामिल हैं:

  • हार्मोनल समस्या: टेस्टोस्टेरोन या अन्य हार्मोन्स का असंतुलन।
  • वीर्य नली में रुकावट: नलियों में रुकावट के कारण शुक्राणु वीर्य में नहीं पहुंच पाते।
  • टेस्टिकल्स में संक्रमण या चोट: पहले हुआ कोई संक्रमण या चोट शुक्राणु उत्पादन को प्रभावित कर सकती है।
  • अनुवांशिक कारण: क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम जैसे जेनेटिक डिसऑर्डर।
  • जीवनशैली और तनाव: खराब डाइट, नींद की कमी और मानसिक तनाव।
  • धूम्रपान और शराब: ये शुक्राणु की गुणवत्ता और मात्रा को कम करते हैं।

इसके लक्षण क्या होते हैं?

कम या निल शुक्राणु के कोई स्पष्ट शारीरिक लक्षण नहीं होते, लेकिन निम्नलिखित संकेत दिख सकते हैं:

  • संतान न होना: लंबे समय तक गर्भधारण में असफलता।
  • यौन कमजोरी: जैसे कामेच्छा में कमी या इरेक्शन में समस्या।
  • तनाव और मानसिक परेशानी: बांझपन के कारण मानसिक तनाव।
  • वीर्य में बदलाव न महसूस होना: Azoospermia में वीर्य सामान्य दिख सकता है, लेकिन उसमें शुक्राणु नहीं होते।

कम या निल शुक्राणु की जांच कैसे होती है?

इस समस्या का पता लगाने के लिए निम्नलिखित जांच की जाती हैं:-

  • वीर्य जांच (Semen Analysis): वीर्य में शुक्राणु की संख्या और गुणवत्ता की जांच।
  • हार्मोन टेस्ट: टेस्टोस्टेरोन और अन्य हार्मोन्स के स्तर की जांच।
  • स्क्रोटल अल्ट्रासाउंड: टेस्टिकल्स और वीर्य नलियों में रुकावट का पता लगाने के लिए।
  • जेनेटिक टेस्टिंग: अनुवांशिक समस्याओं की पहचान के लिए।
  • बायोप्सी: टेस्टिकल्स से ऊतक लेकर शुक्राणु उत्पादन की जांच। (जरूरत पड़ने पर)

कम या निल शुक्राणु का इलाज कैसे होता है?

कम या निल शुक्राणु का इलाज समस्या के कारण पर निर्भर करता है। प्रमुख इलाज के तरीके हैं:-

1. दवाइयों से इलाज:- 

  • हार्मोन सुधारक दवाइयां: हार्मोनल असंतुलन को ठीक करने के लिए।
  • एंटीबायोटिक्स: टेस्टिकल्स या नलियों में संक्रमण के इलाज के लिए।

2. सर्जरी से इलाज:-

  • वीर्य नली की रुकावट दूर करना: Obstructive Azoospermia में सर्जरी से रुकावट हटाई जाती है।
  • वैरिकोसेल सर्जरी: टेस्टिकल्स की नसों में सूजन (वैरिकोसेल) को ठीक करने के लिए।

3. आधुनिक तकनीक:- 

  • IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन): शुक्राणु और अंडे को लैब में निषेचित कर गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।
  • ICSI (Intracytoplasmic Sperm Injection): एक स्वस्थ शुक्राणु को सीधे अंडे में इंजेक्ट किया जाता है।
  • TESE/PESA: टेस्टिकल्स से सीधे शुक्राणु निकालने की माइक्रो-सर्जिकल तकनीकें।

घरेलू उपाय और लाइफस्टाइल टिप्स

कुछ आसान बदलाव शुक्राणु की गुणवत्ता सुधार सकते हैं:-

  • हेल्दी डाइट: जिंक, विटामिन C और E से भरपूर भोजन जैसे नट्स, हरी सब्जियां और फल।
  • धूम्रपान-शराब से दूरी: ये शुक्राणु की संख्या और गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाते हैं।
  • तनाव कम करना: योग और मेडिटेशन से मानसिक शांति।
  • नियमित व्यायाम: मोटापा कम करने और हार्मोन्स को संतुलित करने के लिए।

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Meridian IVF

What sets Meridian IVF apart is that we carry out advanced IVF procedures, using leading-edge technologies, with great precision and hygiene. We are the group of experts in the Fertility Centre in Varanasi. The Meridian IVF Clean Room IVF lab is a hi-tech, advanced lab specially designed to completely eradicate the harmful effect of viruses, bacteria, and other Volatile Organic Compounds (VOCs) on the growth of the embryo.

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